Thursday, September 27, 2007

"क्यूँ नहीं लौट जाते"

हे ऐकान्त के वासी,
ये सूर्य देश कहाँ है,
जिसका कोई सार ना हो,
ऐसा प्रदेश कहाँ है।

देखा, हाँ मैने भी देखा है,
क्षितिज से क्षितिज तक फैला,
नभ की विशालता को चीरता,
नितान्त ऍकान्त था वहाँ।

पर तुम कयूँ इतने चिन्तित हो,
क्यूं ये पीड़ा प्रण लिया है,
क्यूँ नही लौट जाते ऍकान्त मे,
जिसके तुम आदी हो।।

Saturday, September 15, 2007

"मेरा अंडा"
और फिर भगवान ने मुझे इक अंडा दिया और कहा ये दुनिया का सबसे मजबूत अंडा है, हजार हाथी भी इसे नही तोड़ सकते। मैने जो भी किया अंडे ने मुझे सहारा दिया, मुझे पता था कि कुछ भी इसके पार नही जा सकता, मै अजेय होता गया...और जीतता गया....
आज जब सारी दुनिया मेरी है, ये लोग कहते है अंडा कुछ भी नही, ये इक मामूली सा आम अंडा है! मुझे पता है , ये सही में दुनिया का सबसे मजबूत अंडा है, इसिलिये तो मै राजी हो गया आज के इस शक्ति परीक्षण के लिये और दाँव पे लगा दी अपनी सारी कमायी। ये विशाल हथौड़ा सब कुछ तोड़ सकता है, हीरा भी.. लेकिन मुझे पता है ये मेरा अंडा नही तोड़ पायेगा...और तभी मुझसे कहा गया ... परीक्षण का वक्त आ गया है। क्या सही में परीक्षण का वक्त आ गया है, क्या मुझे थोड़ा भी और समय नही मिलेगा, मै डर क्यूँ रहा हूँ... ये तो दुनिया का सबसे मजबूत अंडा है जिसने जिन्दगी भर मेरा साथ दिया है, ये आज भी मुझे नीचा नही दिखायेगा... और मैने अंडा हथौड़े के नीचे रख दिया।
लेकिन इससे पहले कि परीक्षण पूरा होता मै अंडा लेकर वापिस आ गया और अपनी हार स्वीकार कर ली।

क्या मै डर गया हूँ, या मुझे अपने अंडे पे भरोसा नही? जो भी हो , हार गया हूँ पर फिर भी पता नही क्यूँ आज सब कुछ रंगीन दिख रहा है , हर जगह फूल खिल रहे है ..ऍसा लग रहा है जैसे की सारी सृष्टि किसी नवजात शिशु के जन्म की खुशी मना रही है।


दीपक
पुरानी यादें............

"कोई शीर्षक नहीं"

मर गये कुत्ते, सड़ गयी चीले।
यहाँ वहाँ बालू के टीले़।
कितने बंजर कितने निर्जन।
पल पल बदले, अपना तन।।