"क्यूँ नहीं लौट जाते"
हे ऐकान्त के वासी,
ये सूर्य देश कहाँ है,
जिसका कोई सार ना हो,
ऐसा प्रदेश कहाँ है।
देखा, हाँ मैने भी देखा है,
क्षितिज से क्षितिज तक फैला,
नभ की विशालता को चीरता,
नितान्त ऍकान्त था वहाँ।
पर तुम कयूँ इतने चिन्तित हो,
क्यूं ये पीड़ा प्रण लिया है,
क्यूँ नही लौट जाते ऍकान्त मे,
जिसके तुम आदी हो।।
Thursday, September 27, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
budhdhe....correct me if i m wrong, but wat i can make out of this poem is that u r asking to choose easy way out. go nomad !! i do not agree to it entirely.
Woh ekant desh kahaan hai,
Kho gayaa hai woh desh...
humaari tumhaari aadmiyat ke beech...
woh jo hamesha se humaare paas tha..kho gayaa hai woh insaano ke beechon beech..
Post a Comment