वो
छू गई मन्द मदमस्ती से,
उसकी गीली हँसी मुझे,
कहकहो मेँ उसके,
लगा जीवन का सार मुझे,
सँजो के रखना चाहता था,
हर उस पल का हिसाब मैं,
पर खो गयी यादो से,
वो भी, उसकी हँसी भी।
Sunday, August 19, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Deepak's Blog
Deepak's Blog
No comments:
Post a Comment